अभी-अभी: बंगाल में फिर से हिन्दुओं पर बड़ा हमला, महिलाओं के साथ रेप और यहाँ तक की बच्चों को भी नहीं छोड़ा.. देखें विडियो...
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पश्चिम बंगाल में
तीसरे दिन भी हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। पश्चिम बंगाल के बशीरहाट में फिर
से हिंसा भड़क गई है। हिंसक भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज और
आंसू गैस के गोले दागने पड़े है। राज्य में भड़की इन सांप्रदायिक भीषण हिंसाओं को
लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी के बीच आरोप
प्रत्यारोप थमने का नाम नहीं ले रहा है।
वहीं, ममता ने भी केंद्र द्वारा भेजे गए 4 बटालियन पलटन की मदद लेने से भी इंकार
कर दिया है। केंद्र के गृह मंत्री द्वारा मांगे गए रिपोर्ट को भी अब केंद्र को
नहीं सौंपा है। इस बीच बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने राज्य के हालात का जायजा लेने
के लिए पार्टी के चार सांसदों की टीम बनाई है और पश्चिम बंगाल का जायजा लेने के
लिए भेज दिया है। उत्तरी 24 परगना जिले के बादुरिया में सांप्रदायिक झाड़पों के
बाद बशीरहाट कस्बे और स्टेशन क्षेत्र में फिर से तनाव भड़क गया है।
पुलिस लाठीचार्ज और
आशु गैस से भीड़ को तीतर-बितर करने में लग हुई है। गौरतबल है कि इस हफ्ते की शुरुआत
में एक किशोर की आपत्तिजनक फेसबुक पोस्ट के कारण बदुरिया और इसके आसपास के इलाकों-
केवशा बाजार, बांसतला, रामचंद्रपुर
और तेंतुलिया में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए थे और सड़क जाम कर दिया गया। दुकानों
को तोड़ दिया गया और गाड़ियों में आग लगा दी गई।
हालातों को काबू में
करने के लिए राज्य सरकार को बशीरहाट, बादुरिया,
स्वरूपनगर और डेगंगा में इंटरनेट सेवाएं अस्थायी तौर पर रोकनी पड़ी,
ताकि सोशल मीडिया के जरिये अफवाह फैलने से रोका जा सके और शांति
बहाल हो सके। अब तक राज्य में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है बल्कि और बढ़ गई
है। कैलाश विजयवर्गीय के टीम को भी वहां जाने से रोका गया है।
बंगाल में भड़की ताजा
सांप्रदायिक हिंसा के पीछे एक फेसबुक पोस्ट जिम्मेदार है जिसमें पैगंबर मोहम्मद के
बारे में अपमानजनक टिप्पणी की गई थी. कहा जा रहा है कि यह पोस्ट फेसबुक पर 30 जून
यानी शुक्रवार के दिन डाली गई थी. इसके बाद उत्तर 24 परगना जिले में सांप्रदायिक
तनाव फैल गया और हिंसक भीड़ सड़कों पर उतर आई. कोलकाता से बमुश्किल 100 किलोमीटर
दूर स्थित इस जिले के बदूरिया और बशीरहट कस्बे हिंसा की सबसे ज्यादा चपेट में हैं.
इन हालात के बीच यह
अफवाह भी उड़ी है कि फेसबुक पोस्ट एक 17 वर्षीय छात्र ने लिखी थी. वहीं तीन दिन
पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी पर उनका अपमान करने
और उन्हें धमकाने का आरोप लगाया था. हालांकि इन बातों पर आसानी से यकीन नहीं किया
जा सकता. हां, एक बात यहां जरूर पक्के तौर पर कही जा
सकती है कि तकरीबन 70 साल के बाद बंगाल फिर से सांप्रदायिकता की राजनीति में फंसता
हुआ दिख रहा है. इसकी पहली जिम्मेदारी ममता बनर्जी पर है जिन्हें 2011 और 2016 के
चुनावों में भारी जीत मिली थी. वे जानती हैं कि उनकी इस जीत के पीछे उस मुस्लिम
वोटबैंक का सबसे अहम योगदान है जो वामपंथी पार्टियों का पाला छोड़कर तृणमूल
कांग्रेस के साथ आ चुका है.
2011 की जनगणना के
मुताबिक बंगाल में तकरीबन 24 फीसदी मुसलमान हैं. इस मामले में बंगाल से आगे सिर्फ
असम है जहां 34 प्रतिशत आबादी मुस्लिम समुदाय की है. ममता बनर्जी ने यहां
तुष्टिकरण की राजनीति को खूब आगे बढ़ाया है. मुसलमानों को नौकरी में आरक्षण देने
से लेकर इमामों को भत्ता देने जैसे तृणमूल सरकार के फैसलों के चलते यहां भाजपा को
भी यह कहने का मौका मिल गया है कि ममता बनर्जी ‘हिंदू
विरोधी’ हैं. तुष्टिकरण की इस राजनीति में फंसकर ममता बनर्जी
मुसलमानों के साथ अब हिंदुओं के त्योहारों में भी बढ़-चढ़कर शरीक होती दिख रही
हैं. दरअसल अब वे अपनी निष्पक्ष छवि पेश करना चाहती हैं.
ममता बनर्जी द्वारा
अपने को कभी एक धर्म के, तो कभी दूसरे धर्म के करीब
दिखाने की यह रणनीति बंगाल को सांप्रदायिक संघर्ष की फिसलन भरी राह पर धकेल सकती
है. बंगाल 1930 और 1950 के दशक में ऐसे ही हालात का सामना कर चुका है. तब संयुक्त
बंगाल का कुलीन हिंदू तबका इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहा था कि लोकतंत्र के
नाम पर राज्य में मुस्लिम दबदबे वाली सरकार का गठन हो.
आजादी के बाद बंगाल
में चाहे कांग्रेस की सरकार बनी हो या वामपंथी पार्टियों की, इन्होंने कभी-भी सांप्रदायिकता की आग को इस तरह भड़कने नहीं दिया. शायद
इसलिए क्योंकि आजादी के पहले 1946 में कलकत्ता और नोआखली में हुए भीषण दंगों की
स्मृति ने इन पार्टियों को आगे के सबक दे दिए थे.
ममता बनर्जी को इस
समय बंगाल के सामाजिक और राजनीतिक तानेबाने को तोड़ने के बजाय अच्छा प्रशासन देने
पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. अगर हम राजनीतिक नफे-नुकसान की बात करें तो उस
लिहाज से भी यही रणनीति उनके लिए सबसे मुनासिब है.
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